वह व्यक्ति जो अपना नाम भवानी नाम बतलाता था और अर्ध विक्षिप्त की तरह सारे दिन एक कोठरी में अपने आश्रयदाता श्री द्वारिका नाथ जी के पुत्र श्री लालजी महाराज की हवेली में बन्द पड़ा रहता था तथा जब बाहर जाता सड़क पर पड़े कागज चिथड़े कील पत्ती लोहा झोली में भर लाता था आजीवन यहीं रहा ।